Sanvidhaan Rachana डॉ. अंबेडकर कि संविधान रचना में उनका Yogdan क्या रही । उन्होंने दलितों और शोषित वर्गों की जीवन सुधार के लिए क्या-क्या कार्य किए? Dr. Ambedkar संविधान रचना में महत्त्वपूर्ण क्या कार्य रहा आदि तमाम जानकारी आप इस आर्टिकल के माध्यम से पढ़ने वाले हैं। चलिए जानते हैं डॉ. अम्बेडकर के संविधान रचना (Sanvidhaan Rachana Mein Ambedkar के बारे में,

संविधान रचना में भूमिका।
डॉ. अम्बेडकर (Dr. Ambedkar) भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। वर्तमान भारतीय संविधान (Indian Constitution) के निर्माण में डॉ. अम्बेडकर का महान योगदान रहा। डॉ. अम्बेडकर का राजनीतिक चिंतन काफी कुछ यूरोप के उदारवादी चिंतन और परम्परा से प्रभावित था, जिसने व्यक्ति के जीवन, सम्पत्ति और स्वतंत्रता के मूल्यों को सर्वोपरि रखा।
इसी का प्रभाव था कि डॉ. अम्बेडकर व्यक्तिगत सम्पत्ति (Personal Property) और संसदीय प्रणाली को व्यक्ति के विकास के लिए अनिवार्य मानते थे। डॉ. अम्बेडकर ने द्विसदनीय व्यवस्थापिका का समर्थन किया। उन्होंने राष्ट्रपति को संवैधानिक अध्यक्ष (Constitutional President) बनाने का समर्थन किया। मंत्रियों की योग्यता के सम्बंध में डॉ. अम्बेडकर का तर्क काफी कुछ व्यावहारिक था।
अम्बेडकर का विचार
एक विचार यह था कि कोई भी व्यक्ति, यदि वह व्यवस्थापिका का सदस्य नहीं है तो मंत्री नहीं होना चाहिए, पर डॉ. अम्बेडकर का विचार (Thoughts of Dr. Ambedkar) था कि ऐसी अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए। यदि कोई योग्य व्यक्ति है और वह एक स्थान से चुनाव में पराजित हो जाता है तो भी उसे मंत्री बनाया जाना चाहिए तथा यह शर्त रखनी चाहिए कि 6 माह के अंदर वह किसी अन्य स्थान से निर्वाचित होकर सदन का सदस्य बन जाए।
डॉ. अम्बेडकर ने संवैधानिक उपबंधों के माध्यम से दलित और शोषित वर्ग (Dalit and Depressed Classes) को आत्मसम्मान और गौरवपूर्ण स्थिति प्रदान करने का प्रयत्न किया। सामाजिक व्यवस्था में आमूल परिवर्तन करने की दृष्टि से ही भारतीय संविधान की धारा 14 और 17 में सभी नागरिकों को न केवल समान अधिकार प्रदान किए गए, अपितु छुआछूत (untouchability) को समाप्त करते हुए उसके बढ़ावे को अपराध माना गया।
संविधान का हृदय तथा आत्मा
नागरिक स्वतंत्रता (Civil Liberty) को हर परिस्थिति में बनाए रखने का विचार डॉ. अम्बेडकर का था। इसलिए संवैधानिक उपचार के अधिकारों के सम्बंध में उन्होंने कहा, यदि कोई मुझसे यह पूछे कि संविधान का वह कौन-सा अनुच्छेद है जिसके बिना संविधान (Constitution) शून्य प्रायः हो जाएगा तो उस अनुच्छेद को छोड़कर मैं और किसी अनुच्छेद की ओर संकेत नहीं कर सकता?
यह तो संविधान का हृदय तथा आत्मा (Heart and Soul) है और मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता है कि सदन ने इसके महत्त्व को समझा है। भविष्य में कोई संसद इस अनुच्छेद में अंकित लेखों को छीन नहीं सकती क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की लेखादि निकालने की शक्ति, संसद की इच्छा से बनाई गई किसी विधि पर आश्रित नहीं वरन्,
संविधान द्वारा प्रदान की गई है। सर्वोच्च न्यायालय का यह अधिकार केवल संवैधानिक संशोधन (Constitutional Amendment) द्वारा ही छीना जा सकता है। संवैधानिक संशोधन करने की विधि संविधान द्वारा निर्धारित है। मेरे विचार में यह व्यक्ति की सुरक्षा का सबसे महत्त्वशाली परिणाम है। ” भारतीय संविधान के निर्माण में डॉ. अम्बेडकर की अथक भूमिका को ध्यान में रखते हुए तथा उनके व्यापक कानून (Comprehensive Law) सम्बंधी ज्ञान को देखते हुए ही उन्हें आधुनिक मनु कहा जाता है।
दलितों को सम्मानजनक स्थान
डॉ. अम्बेडकर दलितों के प्रमुख तथा सम्पूर्ण समाज (society as a whole) के मान्य नेता थे। उन्होंने आजीवन दलितों को सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए संघर्ष किया। वे कई गुणों से पूर्ण थे। वे प्रखर बुद्धि के धनी थे। साथ-ही-साथ उनमें करुणा का भी भाव था। इसी कारण यद्यपि उनको व्यक्तिगत रूप से सामाजिक प्रतिष्ठा (social standing) प्राप्त हुई तथापि वे दलितों की दयनीय स्थिति देखकर द्रवित हो गए और उनके लिए संघर्ष करते रहे।
समाज में व्याप्त विकृतियों का उन्होंने विरोध किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि जब तक दलितों का शोषण होता रहेगा तब तक समाज पूर्णरूप से विकास नहीं कर सकता। संघर्ष, उत्पीड़न, उपेक्षा और तिरस्कार के कारण स्वाभाविक रूप से उनके मन में क्षोभ और निराशा का विकास हुआ, पर वे हिम्मत नहीं हारे। उन्होंने परिस्थितियों का ऐतिहासिक और वैज्ञानिक विश्लेषण (scientific analysis) किया तथा अनेक अंधविश्वासों को मिथ्या सिद्ध किया।
उन्होंने सिद्ध किया कि देश और समाज को सांस्कृतिक गौरव केवल सवर्ण जाति के लोगों ने ही नहीं दिलाया है अपितु दलित वर्ग में जन्मे अनेक ऋषियों ने भी दिलाया है। डॉ. अम्बेडकर ने जाति प्रथा पर कठोर प्रहार किया, जो आवश्यक और अनिवार्य था। उन्होंने अपने प्रयत्नों से सामाजिक जागृति को विकसित किया जिसके परिणामस्वरूप दलितों के हित में वातावरण निर्मित हो सका। समाज अनुभव करने लगा कि दलितों का शोषण (exploitation of dalits) अमानवीय और अनैतिक है। डॉ. अम्बेडकर ने सामाजिक और देश की एकता को सर्वोपरि माना। बौद्ध धर्म में दीक्षा लेते समय भी उनके मन में यह विचार प्रमुख रहा।
डॉ. अम्बेडकर का कहना
Dr. Ambedkar प्रखर तार्किक थे। उन्होंने कई मान्यताओं को अमान्य सिद्ध किया। उस समय कई विचारकों का मत था कि आर्य बाहर से आए हैं और यहाँ आर्यों ने द्रविड़ जातियों को हराकर अपना राज्य स्थापित किया। डॉ. अम्बेडकर ने आर्यों से सम्बंधित 2 इस धारणा को गलत बताया। उन्होंने लोकमान्य तिलक (Lokmanya Tilak) के इस विचार का भी विरोध किया कि आर्यों का मूल निवास उत्तरी ध्रुव था।
डॉ. अम्बेडकर का कहना था कि पहली बात तो यह है कि आर्य शब्द जातिवाचक नहीं वरन् गुणवाचक है। वेदों में जहाँ-जहाँ आर्य शब्द प्रयुक्त हुआ है, वह गुणवाचक है। डॉ. अम्बेडकर ने इसकी गिनती करते हुए बतलाया कि इस शब्द का उल्लेख वेदों में 33-34 बार हुआ है। उन्होंने यह भी बतलाया कि वेदों में गंगा का उल्लेख हुआ है जो भारत की है। वेदों में घोड़ों का उल्लेख है जो उत्तरी ध्रुव में नहीं होते। डॉ. अम्बेडकर मानते थे कि आर्य भारत के मूल निवासी हैं।
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में डॉ. अम्बेडकर (Sanvidhaan Rachana me Dr. Ambedkar) की सक्रिय भूमिका काँग्रेस से कुछ अलग थी। उनके जीवन में अछूतों को लेकर जो टीस थी, वह उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले अग्रणी नेताओं के सोचने से कुछ अलग करती थी। डॉ. अम्बेडकर परम देशभक्त और राष्ट्रीय एकता के समर्थक थे। 1947 में उन्होंने देशी-रियासतों को भारतीय संघ में सम्मिलित होने का परामर्श दिया।
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