Dr Ram Manohar Lohia के समाजवादी और राजनीतिक विचार, Ram Manohar Lohia भारतीय राजनीति में राम मनोहर लोहिया का महत्त्वपूर्ण योगदान, डॉ. लोहिया की भूमिका आश्चर्यजनक इस आर्टिकल के माध्यम से आप इनके बारे में विस्तार से जानेंगे। जन्म से एंड तक तो चलिए जानते हैं खास आर्टिकल के साथ,

Ram Manohar Lohia भारत के समाजवादी का स्थान
भारत के समाजवादी आन्दोलन में डॉ. राममनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohia) का स्थान महत्त्वपूर्ण है। वे आजीवन अपने विचारों और मान्यताओं के लिए संघर्ष करते रहे, प्रकृति से निर्भीक और पराक्रमी लोहिया सुकरात की परम्परा के थे। जैसे सुकरात अपने विचारों के प्रचार के लिए एथेंस की गलियों में घूमते हुए बालक, युवा, वृद्ध सभी से न्याय, धर्म, कानून की बातें करते रहते थे,
उसी प्रकार Ram Manohar Lohia देश-विदेश में, शहरों, कस्बों और मुहल्लों में, शोषण और उत्पीड़न के विरोध में तथा रंगभेद, समानता, नारी का सम्मान आदि मुद्दों पर बहस छेड़ा करते थे। उनका व्यक्तित्व सशक्त और स्वभाव सरल था। वे आजीवन संघर्षशील रहे, समाजवादी आन्दोलन में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है।
डॉ. राममनोहर लोहिया (Dr Ram Manohar Lohia)
डॉ. राममनोहर लोहिया (1910-1967) का जन्म 23 मार्च 1910 को फैजाबाद जिले में मारवाड़ी परिवार में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अकबरपुर में और बाद में बनारस एवं कलकत्ता में हुई। वे उच्च शिक्षा हेतु जर्मनी गए तथा वहाँ डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
Dr Lohia प्रारम्भ से ही कुशाग्र बुद्धि एवं सजग दृष्टि के व्यक्ति थे। अध्ययन समाप्त करने के बाद वे भारत वापिस आए और आते ही उन्होंने अपने आपको मातृभूमि की सेवा में समर्पित कर दिया। डॉ. लोहिया शीघ्र ही काँग्रेस के विदेश विभाग के प्रमुख बने। स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान वे कई बार जेल गए।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में Dr Ram Manohar Lohia की भूमिका आश्चर्यजनक थी। उन्होंने गुप्त रेडियो केन्द्र की स्थापना की, वायसराय और यू.पी. के गवर्नर को खुले पत्र लिखे। 15 माह भूमिगत रहे, बाद में गिरफ्तार किए गए। उन्होंने आजादी के लिए संघर्ष किया। भारत के समाजवादी आन्दोलन में डॉ. लोहिया का योगदान अविस्मरणीय है।
वे आजीवन समाजवादी रहे। 1934 में काँग्रेस के अन्तर्गत ‘काँग्रेस समाजवादी दल’ का गठन करने वालों में वे भी थे। फरवरी 1947 में Dr Ram Manohar Lohia की अध्यक्षता में काँग्रेस समाजवादी दल का अधिवेशन कानपुर में हुआ। इस अधिवेशन में काँग्रेस शब्द हटाने का निर्णय लिया गया।
1948 में गांधी जी की मृत्यु के बाद अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी ने एक प्रस्ताव पास किया, जिसमें काँग्रेस के अंदर किसी भी प्रकार की दलबंदी को प्रतिबन्धित किया गया। फलतः 1948 में नासिक अधिवेशन के समय समाजवादी काँग्रेस से अलग हुए, 1952 में किसान मजदूर प्रजापार्टी का समाजवादी पार्टी में विलय हुआ।
Ram Manohar Lohia पूँजीवादी एवं साम्यवादी दोनों
अतः प्रजा समाजवादी दल अस्तित्व में आया, डॉ. लोहिया इसके अध्यक्ष बने। डॉ. लोहिया ने इस अधिवेशन में समाजवादी विचारधारा के साथ गांधीवादी विचारधारा वे विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था के समर्थक थे। डॉ. लोहिया ने पूँजीवादी एवं साम्यवादी दोनों ही प्रणालियों की आलोचना की। वे दोनों व्यवस्थाओं को देश हित में नहीं मानते थे।
सन् 1953 में अशोक मेहता ने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था की क्या अनिवार्य मजबूरियाँ हैं? अशोक मेहता का मत था कि काँग्रेस की विचारधारा समाजवादी विचारधारा के निकट आती जा रही है, ऐसी स्थिति में काँग्रेस प्रजा समाजवादी पार्टी में सैद्धान्तिक मैत्री होनी चाहिए। Ram Manohar Lohia ने इस सिद्धांत का विरोध किया तथा काँग्रेस और साम्यवादियों दोनों से दूरी बनाए रखने का तर्क दिया।
उन्होंने समान दूरी का सिद्धांत प्रतिपादित दाउन किया। विशेष परिस्थितियों में चुनाव समझौते की संभावना को उन्होंने अवश्य स्वीकार किया। काँग्रेस तथा प्रजा समाजवादी पार्टी के क्या सम्बंध हों, इस प्रश्न पर दो मत थे। एक अशोक मेहता का तथा दूसरा Ram Manohar Lohia का। दोनों में मतभेद इतना उग्र हुआ कि 1953 में एक नए ‘भारतीय समाजवादी दल’ का निर्माण हुआ। को मिलाने पर जोर दिया और थे।
बाद में ‘संयुक्त समाजवादी पार्टी’ की स्थापना हुई, जिसमें भारतीय समाजवादी दल के सदस्य सम्मिलित हुए। डॉ. लोहिया ने कुछ हिचक के बाद इस दल का स्वागत किया। 1966 में कोटा में संयुक्त समाजवादी पार्टी का अधिवेशन हुआ, जिसमें डॉ. लोहिया के निर्देशानुसार राजनीतिक कार्यक्रम तय किए गए।
डॉ. लोहिया सरकार की
डॉ. लोहिया सरकार की आर्थिक नीतियों एवं विदेश नीति के कटु आलोचक थे। वे हिन्दी के समर्थक और क्षेत्रीय भाषाओं के पक्षधर थे। रंगभेद का उन्होंने अमेरिका में जाकर विरोध किया। स्त्री स्वतंत्रता का समर्थन और सभी प्रकार के शोषण का उन्होंने आजीवन विरोध किया। Ram Manohar Lohia सफल सांसद थे। भारतीय संसद में वे जब तक रहे तब तक सांसदों और का मेल देखने को मिलता रहा। 30 सितम्बर 1967 को डॉ. लोहिया का स्वर्गवास हुआ।
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