Pandit Deendayal Upadhyay दीनदयाल उपाध्याय जीवनी (1916-1968)

पंडित दीनदयाल उपाध्याय बायोग्राफी के बारे में आप इस आर्टिकल में पड़ेंगे। Pandit Deendayal Upadhyay जीवनी के बारे में विस्तार से जानेंगे। आर्टिकल को पूरा पढ़ें यह जानकारी बहुत ही उपयोगी है। तो चलिए जानते हैं पंडित दीनदयाल उपाध्याय बायोग्राफी इन हिंदी,

Pandit Deendayal Upadhyay
Pandit Deendayal Upadhyay

Pandit Deendayal Upadhyay:

स्वातंत्र्योत्तर भारतीय राजनीति के प्रमुख शिल्पियों में से थे। सामान्यतः उनकी ख्याति सक्रिय राजनीतिज्ञ और कुशल संगठन के रूप में रही है, पर इससे अधिक वे एक महान विचारक और चिन्तक थे। वे मूलतः आधुनिक भारत की उस महान परम्परा की एक कड़ी थे, जिनके लिये राजनीति सत्ता में आने और सत्ता में ही बने रहने की पद्धति नहीं थी, प्रत्युत वह स्वस्थ और सात्विक समाज की स्थापना के लक्ष्य को प्राप्त करने का पवित्र साधन थी।

उनका चिन्तन उन सर्वोच्च भारतीय मूल्यों और आदर्शों से प्रभावित एवं अनुप्राणित था, जिन्हें भारतीय समाज ने शताब्दियों के लम्बे काल में विकसित किया है। जब कई भारतीय विचारक सामाजिक मूल्यों और राजनीतिक पद्धति को पाश्चात्य विचारधाराओं पर आधारित के लिए प्रयत्नशील थे, उस समय Pandit Deendayal जी ने दृढ़तापूर्वक इस विचार को सम्मुख रखा कि सभी पाश्चात्य विचारधारायें अपूर्ण और एकांगी हैं तथा भारत सहित विश्व के मानव मात्र का कल्याण भारतीय चिन्तनधारा और मूल्यों में है। दीनदायल उपाध्याय ने गांधी जी के चिन्तन को ही आगे बढ़ाया।

Pandit Deendayal Upadhyay जीवन परिचय

दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सित्मबर 1916 में मथुरा जिले के नगला चन्द्रभान नामक ग्राम में हुआ। बालकाल से ही वे मेधावी थे। दसवीं की परीक्षा उन्होंने प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त कर उत्तीर्ण की। इन्टरमीडिएट की भी परीक्षा प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त कर उत्तीर्ण की। स्नातक परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। वे प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में भी उत्तीर्ण हुए, पर उन्होंने शासकीय सेवा करना ठीक नहीं समझा और सार्वजनिक जीवन जीना पसन्द किया।

सन् 1937 में Pandit Deendayal Upadhyay Ji राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आए। उस समय वे स्नातक कक्षा के छात्र थे। संघ के अन्य अधिकारियों के अलावा उनकी भेंट कानपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से भी हुई। वे उनके व्यक्तित्व और विचारों से इतने प्रभावित हुए कि 1942 में संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गये तथा आजीवन प्रचारक ही रहे।

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दीनदयाल जी सामान्य परिवार में पैदा हुए थे। बाल्यकाल में ही उनके पिता, माँ तथा बाद में उनके एकमात्र भाई का देहान्त हो गया था। उनका शिक्षक उनके मामा राधारमण जी के यहाँ रहकर हुआ। स्वाभाविक है उनके मामा चाहते थे कि Deendayal शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात कोई नौकरी करें और अपनी ग्रहस्थी बसाएँ पर दीनदयाल जी ने ऐसा नहीं किया, वे संघ के प्रचारक बन गए।

Biography of Pandit Deendayal Upadhyay

प्रचारक बनने के बाद उन्होंने अपने मामा को जो पत्र लिखा उसमें उनकी वैचारिक दृष्टि और समाज तथा देश के उत्थान के लिए सम्पूर्ण समर्पण का दृढ़ निश्चय दिखाई देता है। मामाजी को लिखे अपने पत्र में दीनदयाल जी ने समाज की परिस्थितियों का वर्णन करते हुए तथा समाज के विकास के लिए अपने कर्तव्यों का स्मरण कराते हुए लिखा,

‘जिस समाज और धर्म की रक्षा के लिए राम ने वनवास सहा, कृष्ण ने अनेक कष्ट उठाए राणा प्रताप जंगल-जंगल मारे फिरे, शिवाजी ने सर्वश्वार्पण कर दिया, गुरु गोविंद सिंह के छोटेछोटे बच्चे जाते जी किले की दीवारों में चुने गए, क्या उसके खातिर हम अपने जीवन की आकांक्षाओं का, झूठी आकांक्षाओं का त्याग भी नहीं कर सकते हैं?’ दीनदयाल जी ने यह भी लिखा, ‘ परमात्मा ने हम लोगों को सब प्रकार समर्थ बनाया है फिर क्या हम अपने में से एक को भी देश के लिए नहीं दे सकते हैं? “

दीनदयाल जी का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे सफल संघटनकर्ता थे। संघ के प्रचारक के नाते दीनदयाल जी का उत्तर प्रदेश में संघ विस्तार में काफी योगदान रहा। इसके साथ ही उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी कार्य किया। सन् 1945 में जब ‘राष्ट्र धर्म प्रकाशन’ की स्थापना हुई, Pandit Deendayal Upadhyay जी को इसका मार्गदर्शक बनाया गया।

Pandit Deendayal Upadhyay Jeevani

राष्ट्र धर्म मासिक, पाञ्चजन्य साप्ताहिक तथा स्वदेश दैनिक समाचार पत्रों के प्रकाशन में दीनदयाल जी की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही। उन्होंने कम्पोजिंग से लेकर छापने तक तथा बण्डलों को स्टेशन पहुँचाने तक का कार्य किया। दीनदयाल जी का लेखन भी अत्यधिक प्रभावी था। उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं जिनमें सम्राट चन्द्रगुप्त, शंकराचार्य, राष्ट्रजीवन की दिशा, एकात्म मानववाद, हमारा कश्मीर, अखण्ड भारत, भारतीय राष्ट्र जीवन का पुण्य प्रवाह (बुद्ध से शंकराचार्य तक) प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त समय-समय पर तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक मुद्दों पर भी दीनदयाल जी का लेखन हुआ है।

21 अक्टूबर, 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना का निश्चय हुआ तथा दिसम्बर 1951 में कानपुर में भारतीय जनसंघ का प्रथम अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में दीनदयाल जी को भारतीय जनसंघ का महामंत्री बनाया गया। यहाँ से उनकी राजनीतिक यात्रा प्रारम्भ हुई। अथक परिश्रम करते हुए उनके प्रयत्नों से देश में जनसंघ के संगठन का विस्तार हुआ।

Pandit Deendayal Upadhyay Ji सन् 1967 में कालीकट (केरल) अधिवेशन में उन्हें भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। 11 फरवरी, 1968 में रेल द्वारा वे लखनऊ से पटना जाते हुए मुगलसराय रेलवे स्टेशन यार्ड में पटरी के किनारे उनका शव पड़ा मिला। संदिग्ध परिस्थितियों में दीनदयाल जी की अकाल मृत्यु हुई।

निष्कर्ष

ऊपर दिए गए आर्टिकल के माध्यम से आपने पंडित दीनदयाल उपाध्याय (Pandit Deendayal Upadhyay) जी के बारे में जाना। बायोग्राफी ऑफ पंडित दीनदयाल उपाध्याय। आशा है आपको यह जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी आर्टिकल पढ़ने के लिए धन्यवाद, आपका समय मंगलमय हो।

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