Mahatma Gandhi ke bare mein || जीवन परिचय पर निबंध || Gandhiji Essay

Mahatma Gandhi ke bare mein

भारत के इतिहास में Mahatma Gandhi ने वह सपने देखे थे कि एक अंतिम छोर के व्यक्ति के लिए वह सारी योजनाओं का लाभ मिले और Govt Sarkari Yojna का भरपूर लाभ लेने के लिए उन्होंने बहुत कुछ योगदान दिया। चलिए आज इसी क्रम में जानते हैं महात्मा गांधी जी के बारे में (Mahatma Gandhi ke bare mein) रूप में Gandhiji Essay आप किस आर्टिकल में पढ़ने वाले हैं। आप इसे पूरा पढ़ें तो चलिए स्टार्ट करते हैं और गांधीजी के बारे में (mahatma gandhi essay hindi) जानते हैं।

Mahatma Gandhi ke bare mein
Mahatma Gandhi ke bare mein

Mahatma Gandhi ke bare mein (महात्मा गांधी 1869-1948)

महात्मा गांधी, केवल राजनीतिक विचारक ही नहीं थे अपितु एक संघर्षशील योद्धा, संत और मानवता के संदेशवाहक भी थे। उनके विचारों का फैसला व्यापक है, जिसमें व्यक्तिगत शुभ से लेकर जागतिक कल्याण की सभी सम्भावनाएँ निहित हैं, उनका चिन्तन मूँगफली के दाने की उपयोगिता से लेकर विश्व कल्याण (world welfare) और परब्रह्म की सत्ता के विचार तक विस्तृत है।

Louis fisher ने अपनी पुस्तक ‘गांधी और स्तालिन’ में ‘राजनीति और मूँगफली’ नामक अध्याय लिखा है, ‘Harijan’ नामक पत्र में एक दिन वे बड़ी से बड़ी अन्तर्राष्ट्रीय समस्या पर विचार करते थे उसी ‘हरिजन’ पत्र में वे दूसरी ‘मूँगफली’ जैसी छोटी चीज पर विचार करते थे। Gandhiji का जीवन और उनके विचार बहुत सरल हैं, पर उनके जीवन और विचारों का विश्लेषण बहुत जटिल है।

वस्तुतः जो व्यक्ति जितना सरल होता है, उसका विश्लेषण बहुत कठिन होता है। उन्होंने जो कुछ कहा और किया वह किसी से सुना हुआ अथवा पढ़ा हुआ नहीं था, अपितु किया हुआ और अन्तरात्मा से आदेशित था। गांधी जी (Gandhiji) की प्रज्ञा और समस्याओं को दखने-समझने की दृष्टि बहुत व्यापक थी।

ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी (British Empire)

उन्होंने Bharat को उसकी विशेषताओं और कमजोरियों के साथ भारत में रहकर ही नहीं देखा अपितु भारत से बाहर रहकर भी देखा। वे लगभग 24 वर्ष विदेशों में रहे 6 वर्ष से अधिक ब्रिटिश कारागार में रहे। समस्याओं के प्रति उनकी दृष्टि तटस्थ नहीं थी। गांधी जी (Gandhiji) आजीवन सत्यवादी रहे। यही उनका जीवन था।

उनकी शक्ति आत्मा की शक्ति थी और आत्मा के बल पर उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती (British Empire) दी और उसे परास्त किया। उनकी कार्यशक्ति और क्षमताएँ आश्चर्यजनक थीं। इसका अन्दाजा Gopal Krishna Gokhale के इस कथन से लगाया जा सकता है,

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‘उनमें मिट्टी से वीर पैदा करने की शक्ति है।’ वर्तमान में केवल उन्हीं की मृत्यु पर यह कहा जा सकता था जो पं। जवाहर लाल नेहरू (Pt. Jawaharlal Nehru) ने कहा, “एक गरिमा चली गई, हमारे जीवन को ऊष्मा और आलोक देने वाला सूर्य अस्त हो गया है और हम शीत और अँधेरे में खड़े काँपते हैं।”

Mahatma Gandhi ka Janm (गांधी का जन्म)

मोहनदास करमचन्द गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को कठियावाड़ के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था। यह वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व का था। इसी वर्ष स्वेज नहर यातायात के लिए खुली, कॉर्ल मॉर्क्स ने ‘दास केपिटल’ नामक अपनी प्रसिद्ध पुस्तक लिखी तथा नेपोलियन बोनापार्ट की प्रथम जन्म शताब्दी मनाई गई।

प्रारम्भ से ही वैष्णव (Vaishnava) आस्थाओं का प्रभाव पड़ने के कारण उनका दृष्टिकोण बचपन से ही मुख्यतः नैतिक बन गया। प्रारम्भिक शिक्षा राजकोट (Elementary Education Rajkot) में हुई तथा मैट्रिक की शिक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे कानून की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड गए। वहाँ से बैरिस्टर होकर भारत लौटे।

उच्च शिक्षा कानून के अध्ययन (study of law) , इस्लाम धर्म, थियोसोफिकल सोसाइटी का सम्पर्क, बचपन से ही रामायण और गीता (Ramayana and Gita) के संस्कार, एक वकील के रूप में आए अनुभव एवं दक्षिण अफ्रीका में किए गए उनके सामाजिक और राजनीतिक प्रयोगों ने उनमें एक निश्चित, परन्तु दृढ़ आत्मबल और दृष्टिकोण को विकसित किया।

मानवता के प्रति प्रेम, सत्य के प्रति अविचल आस्था और राज्य के अन्यायी तथा जनहित विरोधी कार्यों का विरोध उनके जीवन का अंग बन गया। वे असहाय, पीड़ित और गरीब के साथी और पथ-प्रदर्शक बन गए। उन्होंने सत्यान्वेषी के रूप में जो अनुभवों और अनुभूतियों को प्राप्त किया उन्हें अपने जीवन और विचारों के रूप में व्यक्त किया।

Sangharsh Jivan Mahatma Gandhii (संघर्ष जीवन)

Gandhiji (गांधीजी) 1893 में दक्षिण अफ्रीका गए। नाटाल के सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत होने वाले वे पहले भारतीय अधिवक्ता थे। यहीं से गांधी जी का सार्वजनिक जीवन प्रारम्भ होता है। South Africa में वे शीघ्र ही भारतीयों के प्रवक्ता बन गए। उन्होंने भारतीय भेदभाव और रंगभेद का विरोध अहिंसक तरीके से किया।

1893 से 1914 तक वे अनवरत संघर्ष करते रहे। यहीं उन्होंने अपनी नैतिक मान्यताओं पर ऐसी परिस्थितियों में अमल किया जिसमें हजारों असहाय और पीड़ित व्यक्तियों के हिताहित का प्रश्न सामने था। दक्षिण अफ्रीका में Gandhiji ने अनिवार्य पंजीकरण और हस्तमुद्रण, अन्तः प्रांतीय अप्रवास पर प्रतिबंन्ध, बन्धक मजदूरों पर लगाए गए कर, ईसाई विवाह के अतिरिक्त अन्य सभी विवाहों को अमान्य ठहराने वाले कानूनों आदि का विरोध किया।

Janmanas Seva (मानव सेवा के कार्यों)

यहाँ गांधी जी ने रचनात्मक और मानव सेवा के कार्यों को भी प्रारम्भ किया। 1899 में बोअर युद्ध के लिए ‘England Ambulance Corps’ का गठन किया तथा युद्ध में इस एम्बुलेंस कोर ने उल्लेखनीय सेवा कार्य किया। गांधी जी के जीवन में आश्रमों का काफी महत्त्व रहा है।

उनके सभी सामाजिक, राजनीतिक और मानव-सेवा (Janmanas Seva) के कार्यक्रमों का संचालन इन आश्रमों से ही हुआ है। सबसे पहला आश्रम गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में ‘phoenix form’ के रूप में स्थापित किया। वस्तुतः दक्षिण अफ्रीका का प्रवास काल गांधी जी के आध्यात्मिक और राजनीतिक विकास का उषाकाल था।

1914 में गांधी जी भारत वापस आए। इसी समय जनता ने उन्हें ‘Mahatma’ नाम से सम्बोधित किया और वे ‘Mahatma Gandhi’ हो गए। 1915 में उन्होंने भारत में साबरमती नदी के किनारे ‘सत्याग्रह आश्रम’ की स्थापना की। यही आश्रम बाद में ‘Sabarmati Ashram’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

1917 से Gandhiji ने भारत में सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। ‘चम्पारन के सत्याग्रह’ द्वारा नील की खेती करने वाले श्रमिकों को न्याय दिलाने में वे सफल हुए। इसी समय उन्होंने खेड़ा आन्दोलन किया। 1919 में गांधी जी ने ‘रोलेट एक्ट’ के विरोध में सत्याग्रह करने का संकल्प लिया। इसके बाद ब्रिटिश शासन से संघर्ष का जो सिलसिला प्रारम्भ हुआ, वह स्वतन्त्रता प्राप्ति तक चलता रहा।

Gandhiji का व्यक्तित्व

गांधी जी (Gandhiji) का व्यक्तित्व महान था, वे समुद्र के समान गम्भीर और गहरे तथा हिमालय के समान दृढ़ और ऊँचे थे। गौतम के समान बुद्धिवादी और ईसा के समान दयालु थे। वे सत्याग्रही नेता, योद्धा, पथ-प्रदर्शक, उपदेशक, सन्त सब कुछ थे। उनके जीवन और विचारों में जितना विस्तार था उतना तो एक व्यक्ति क्या संस्थाओं में भी नहीं होता?

20 वीं सदी में विश्व की महान विभूतियों में से एक थे इस टीम ने ठीक ही कहा था आने वाली पीढ़ियाँ शायद मुश्किल से ही यह विश्वास कर पाएंगी कि Gandhiji जैसा हाड मास का पुतला कभी इस धरती पर हुआ होगा बे इंसानों में चमत्कार थे, 30 जनवरी 1948 को वे परलोक वासी हुए.

निष्कर्ष

दोस्तों आपने ऊपर दी गई कंटेंट के माध्यम से गांधीजी के बारे में (Mahatma Gandhi ke bare mein) जाना। वास्तव में महात्मा Gandhiji भारत के अनमोल रत्नों में से हैं। जिन्होंने हमारे परेशानियों को सरल बनाने का अथक प्रयास किया। अब आने वाली पीढ़ी क्या कर सकती हैं यह देखना होगा। आर्टिकल पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, आपका समय शुभ रहे।

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