महात्मा गांधी जी (Mahatma Gandhi ke vichar) का राज्य एवं स्वतंत्रता सम्बंधी विचार क्या है? आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से बताने वाले हैं कि Gandhi Ke Vichar राज्य एवं स्वतंत्र सम्बंधी क्या-क्या है? आप इसे पूरा पढ़ें और तो चलिए जानते हैं।

राज्य सम्बन्धी विचार Gandhi ke vichar
गांधी जी मूलतः दार्शनिक अराजकतावादी थे। अहिंसा में प्रबल आस्था रखने के कारण वे किसी भी रूप में राज्य की सत्ता को स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने दार्शनिक, नैतिक, ऐतिहासिक और आर्थिक आधार पर राज्य का विरोध किया तथा अहिंसक समाज की रूपरेखा प्रस्तुत की।
1-Gandhiji ke दार्शनिक आधार पर राज्य (Rajya) का विरोध करने का कारण यह था कि व्यक्ति मूलतः एक नैतिक प्राणी है। राज्य में व्यक्ति की नैतिकता का विकास सम्भव नहीं है। इसका कारण यह है कि कोई भी कार्य उसी स्थिति में नैतिक हो सकता है जब उसका करना हमारी स्वतन्त्र इच्छा पर निर्भर हो, पर यदि कोई कार्य हमारी इच्छा पर निर्भर नहीं है तो वह नैतिक नहीं है।
यदि हम किसी कार्य को दूसरों की इच्छा से करते हैं तब नैतिकता का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। राज्य अनैतिक है क्योंकि वह हमें सभी कार्य हमारी इच्छा से नहीं करने देता अपितु दण्ड और कानून का भय दिखाकर वह हमें सभी कार्य उसकी (Rajya) इच्छानुसार करने के लिए बाध्य करता है। अतः राज्य में रहते हुए नैतिकता का पालन करना सम्भव नहीं है।
2-गांधी जी राज्य (Gandhiji Rajya) को बाध्यकारी शक्ति मानते हैं। राज्य, हिंसा और पाशविक शक्ति पर आधारित है। इसके परिणामस्वरूप मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाता है। गांधी जी Rajya की शक्ति में वृद्धि को शंका की दृष्टि से देखते थे, क्योंकि उन्हें यह लगता था कि राज्य (Rajya) की शक्ति में वृद्धि मनुष्य के व्यक्तित्व को सीमित करेगी। राज्य, हिंसा का घनीभूत और संगठित रूप है। एक व्यक्ति में आत्मा होती है पर राज्य आत्माहीन यंत्र मात्र है जिसे हिंसा से अलग नहीं किया जा सकता।
Gandhiji Ke Rajya Sambandhi Vichar (राज्य सम्बन्धी विचार)
3-गांधी जी ने राज्य का विरोध इसलिए भी किया क्योंकि राज्य अपनी शक्ति और अधिकारों में निरन्तर वृद्धि करता रहता है, यह उसकी प्रवृत्ति है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधा उपस्थित होती है। गांधी जी (Gandhiji) कहा करते थे कि मैं राज्य की शक्ति में वृद्धि को शंका की दृष्टि से देखता हूँ क्योंकि प्रगट रूप में राज्य की शक्तियाँ शोषण को कम से कम करके लाभ पहुँचाती हैं।
पर मनुष्य के उस व्यक्तित्व को नष्ट करके वह मानव जाति को अधिकतम हानि पहुँचाती है, जो सब प्रकार की उन्नति का मूल है। Gandhi Ji कहते थे कि मुझे जो बात नापसंद है, वह है बल के आधार पर बना हुआ संगठन। राज्य ऐसा ही संगठन है। अतः एक अहिंसक समाज में राज्य अनावश्यक है। वस्तुत: अहिंसक और अराजक समाज में राजनीतिक सत्ता के लिए कोई स्थान नहीं है।
Svatantrata Sambandhi Gandhi ke vichar (स्वतंत्रता सम्बन्धी विचार)
Gandhi ji के चिन्तन में स्वतंत्रता सम्बंधी अवधारणा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनकी आस्था नैतिक और आध्यात्मिक स्वतंत्रता में तो थी ही, साथ ही वे राजनीतिक स्वतंत्रता के प्रवल समर्थक थे।
गांधी जी ने आर्थिक स्वतंत्रता (Arthik Svatantrata) का भी समर्थन किया। सर्वोदय और स्वराज्य का विचार गरीब और असहाय लोगों को आर्थिक स्वतंत्रता की गारन्टी थी। गांधी जी ने राष्ट्रीय स्वाधीनता का समर्थन किया। वे स्वयं राष्ट्रीयता, स्वाधीनता प्राप्ति के लिए संघर्ष करने वाले सेनानी थे। उन्होंने व्यक्तिगत और नागरिक दोनों प्रकार की स्वतंत्रता का समर्थन (Svatantrata Ka Samrthan) किया। विचार अभिव्यक्ति और लेख लिखने की स्वतंत्रता को उन्होंने स्वराज्य का आवश्यक अंग माना।
Mahatma Gandhi Ji ने व्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-ही-साथ उसके सामाजिक दायित्वों की भी चर्चा की। वे व्यक्तिगत Svatantrata और सामाजिक अनुशासन में सामंजस्य स्थापित करने के समर्थक थे। वे चाहते थे कि लोग अधिकारों के साथ-ही-साथ कर्त्तव्यों का भी ध्यान रखें जिससे कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक उत्तरदायित्व में कोई विरोध पैदा न हो।
निष्कर्ष
ऊपर दिए गए आर्टिकल के माध्यम से अपने राज्य एवं स्वतंत्रता सम्बंधी गांधी के विचार (Gandhi Ke Vichar) जाने। आशा है आपको ऊपर दिया गया आर्टिकल जरूर अच्छा लगा होगा महात्मा गांधी जी के बारे में उनकी विचारों को जाना। आर्टिकल पढ़ने के लिए धन्यवाद ।
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