गांधीजी के विचार (Gandhi Ji Ke Vichar) और उन विचारों का मुख्य स्रोत क्या है? कहाँ से प्रेरणा और गांधीजी अपने किस प्रकार के विचार रखते थे? किस प्रकार की गांधी जी की अवधारणाएँ थी? आदि तमाम जानकारी आप इस आर्टिकल में पढ़ने वाले हैं तो चलिए शुरू करें गांधीजी के विचार स्रोत।

गांधी जी के विचारों का स्रोत (Gandhi Ji Ke Vichar)
गांधी जी के विचारों पर भारतीय चिन्तन परम्परा तथा पाश्चात्य विचारकों के विचारों का प्रभाव पड़ा। गांधी जी का परिवार धार्मिक परिवार था अतः उन पर प्रारम्भ से ही वैष्णव आस्थाओं और विश्वासों का प्रभाव पड़ना प्रारम्भ हो गया था। उन पर वेद, उपनिषद, भगवतगीता, जैन और बौद्ध धर्म तथा अनेक भारतीय साधु-महात्माओं के विचारों का प्रभाव पड़ा।
सन् 1896 में जब गांधी जी अफ्रीका में थे उन्होंने जॉन रस्किन की पुस्तक ‘अनटू दि लॉस्ट’ पढ़ी। वे इस पुस्तक से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसका गुजराती अनुवाद ‘सर्वोदय’ के नाम से प्रकाशित किया। इस पुस्तक से उन्होंने श्रम की महत्ता, एक व्यक्ति का हित सभी व्यक्तियों के हित में निहित है का मूल विचार प्राप्त किया। चारित्रिक दृढ़ता, आत्मिक बल के सर्वोच्च गुण इसी पुस्तक से प्राप्त किए।
डेविड थोरी अमेरिका के प्रसिद्ध अराजकवादी विचारक थे। गांधी जी पर इनके विचारों (Gandhi Ji Ke Vichar) का गहरा प्रभाव पड़ा। डेविड थोरी ने ही सबसे पहले 1849 में ‘सविनय अवज्ञा’ शब्द का प्रयोग किया जिसका अभिप्राय था, उन सभी संस्थाओं और व्यक्तियों के साथ सहयोग करना जो भलाई और अच्छाई के विचारों को बढ़ाते हैं, तथा उन व्यक्तियों और संस्थाओं से असहयोग करना जो बुराइयों को बढ़ाते हैं।
थोरी की पुस्तक ‘ऑन द ड्यूटी ऑफ सिविल डिसओवीडियन्स’ का गांधी जी पर प्रभाव पड़ा। यद्यपि थोरी ने कानूनों को तोड़ने के लिए हिंसा-अहिंसा का परहेज नहीं किया, पर गांधी जी ने अहिंसक रहते हुए सरकार के दमनकारी और अनैतिक कानूनों को तोड़ने पर बल दिया। उन्होंने परिष्कृत रूप में सविनय अवज्ञा के विचार को ग्रहण किया।
गांधी जी पर अनेक विचारों (Gandhi Ji Ke Anek Vicharo)
गांधी जी पर टॉलस्टाय की रचनाएँ संक्षिप्त ‘सुसमाचार’ (गोस्पाल इन ब्रीफ) , ‘क्या करें’ (ह्वाट टू डू) ? तथा ‘स्वर्ग हमारे भीतर है’ (द किंगडम ऑफ गॉड इज विदिन यू) प्रमुख हैं, का भी प्रभाव पड़ा। टॉलस्टाय की रचनाओं और विचारों ने अहिंसा पर गांधी जी की आस्था को दृढ़ किया।
गांधी जी पर कार्लाइल, हजरत मुहम्मद की जीवनी तथा एडेल्फ जुस्ट की पुस्तक ‘प्रकृति की ओर लौटो’ (रिटर्न टू नेचर) का भी प्रभाव पड़ा। इस प्रकार हम देखते हैं कि गांधी जी पर अनेक विचारों, मान्यताओं का प्रभाव पड़ा जिसमें पूर्वात्य और पाश्चात्य दोनों ही विचार सम्मिलित हैं। वस्तुतः उन्होंने खुले दिमाग से अच्छे विचारों को स्वीकार किया तथा उनके आधार पर अपने विचारों और मान्यताओं को विस्तारित किया।
गांधी जी की आध्यात्मिक धारणाएँ
Gandhi Ji Ke Vichar और उनका जीवन आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत है। गांधी जी के समस्त कार्यों की प्रेरणा और सभी कार्यों का लक्ष्य आध्यात्म था। वे उसी के लिए प्रयत्नशील थे। उनके आध्यात्मिक चिंतन में ईश्वर, सत्य, अहिंसा, नैतिकता आदि को विशेष स्थान प्राप्त है। ईश्वर सम्बन्धी विचार गांधी जी आस्तिक थे।
ईश्वर में उनकी अट आरभीटी है। हम उसे सच्चिदानन्द, ब्रह्म, राम अथवा सत्य कुछ भी कह सकते हैं। हम बिना ईश्वर के जीवित नहीं रह सकते। गांधी जी मानते थे कि यह सम्भव है कि व्यक्ति हवा और पानी के बिना जीवित रह ले पर यह सम्भव नहीं कि व्या ईश्वर के बिना जीवित रह ले।
ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण क्या है? गांधी जी ने अस्तित्व का ऐसा कोई प्रमाण नहीं दिया तथापि उन्होंने ईश्वर के सम्बन्ध में कुछ प्रचलित प्रमाण उपस्थित किए। उनके अनुसार, ईश्वर के अस्तित्व के सीमित प्रमाण देना सम्भव है। जगत् में व्यवस्था है और पदार्थ और प्रत्येक जीवित प्राणी एक अटल नियम से बँधा है।
यह नियम अन्धा नहीं है क्योंकि मनुष्य के आचरण को किसी अधिनियम के अनुसार चलाया नहीं जा सकता तो फिर समस्त जीवन को चलाने वाला, यह नियम ईश्वर ही है। ” गांधी जी का कहना (Gandhi Ji Ke Vichar) था कि जब चारों ओर हर चीज बदल रही है, नष्ट हो रही है तब इस सम्पूर्ण परिवर्तन के पीछे कोई चेतना शक्ति ऐसी अवश्य है जो बदलती नहीं है। यह चेतना शक्ति सबको धारण किए हुए है, सबका सर्जन करती है, संहार करती है और पुनः सर्जन करती है।
ईश्वर सत्य और सत्य ही ईश्वर (Ishwar Satya)
जीवनदायी शक्ति अथवा सत्ता ईश्वर के सिवाय और कुछ नहीं है। यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है कि यदि ईश्वर है तो वह वैयक्तिक है अथवा निर्वैयक्तिक? ‘ गांधी जी का ईश्वर ऐसा दयालु है जो भक्तों की प्रार्थना सुनता है। इस रूप में उनका मत वैयक्तिक ईश्वर को स्वीकार करने का है।
वे कहते हैं कि मुझे एक भी ऐसा उदाहरण याद नहीं जब अन्तिम क्षण उसने (ईश्वर ने) मुझे असहाय अवस्था में छोड़ दिया हो, पर उनके विचारों में ऐसी भी प्रवृत्ति देखने को मिलती है जो उन्हें वैयक्तिक ईश्वर की धारणा से दूर ले जाती है। वे कहते हैं-” मैं ईश्वर को व्यक्ति नहीं मानता, ईश्वर का नियम और ईश्वर, दो पृथक पदार्थ या तथ्य नहीं हैं। जैसे लौकिक राजा और उसके नियम पृथक होते हैं। ईश्वर तो प्रत्यक्ष है, स्वयं नियम है।
समस्त जीवन को चलाने वाला नियम ही ईश्वर है। गांधी जी के इस प्रकार के विचार (Gandhi Ji Ke Vichar) हमें सत्य की धारणा की ओर ले जाते हैं। ईश्वर सम्बंधी विचार गांधी जी के चिन्तन में कई रूपों में प्रगट हुए हैं। वे दरिद्रनारायण में ईश्वर को देखते हैं। इस रूप में दरिद्र अर्थात् गरीबों की सेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा है। उन्होंने ईश्वर को मानवता से पृथक नहीं किया। उन्होंने ईश्वर को सत्य, प्रेम और अन्तःकरण में देखा। उनके लिए’ईश्वर सत्य है’ और सत्य ही ईश्वर है।
सत्य की अवधारणा (Satya ki avdharna)
सत्य की धारणा को गांधी दर्शन से पृथक नहीं किया जा सकता। सत्य हमारे व्यवहार और कार्य का आधार है। सत्य के बिना हम किसी भी नियम का शुद्ध पालन नहीं कर सकते। सत्य शब्द सत् से निकला है जिसका अर्थ है ‘होना’ ; किसी चीज का होना या उसके अस्तित्व का होना। सत्य के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।
Gandhi Ji ने सापेक्ष सत्य और शुद्ध सत्य को अलग-अलग माना है। सापेक्ष परिस्थितिजन्य सत्य होता है अर्थात् यह परिस्थिति पर निर्भर है। यह एक प्रकार की परिस्थिति में सत्य हो सकता है तथा दूसरी प्रकार की परिस्थिति में आवश्यक नहीं कि सत्य रहे।
पर निरपेक्ष सत्य देश, काल, परिस्थिति के विचार से परे होता है। यह अन्तिम सत्य है। वह त्रिकाल-भूत, भविष्य, वर्तमान सत्य रहता है। इस रूप में यह शुद्ध सत्य, ईश्वर का रूप है। सत्य का पालन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में होना चाहिए। साध्य-साधन की पवित्रता
लक्ष्य प्राप्त करने के लिए Vichar
हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कैसे साधन प्रयोग में लाने चाहिए? एक Vichar तो यह है कि लक्ष्य प्राप्ति प्रमुख है। साधनों के उचित अथवा अनुचित होने का विचार नहीं किया जाना चाहिए। साधनों की स्वतंत्र सत्ता नहीं होती। दूसरा विचार यह है कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए हमें साधन भी उचित प्रयोग में लाने चाहिए।
गांधी जी साधनों की पवित्रता में विश्वास करते थे। उनका मानना था कि अनुचित साधनों से उचित साध्य प्राप्त नहीं किया जा सकता, साधन भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं जितना महत्त्वपूर्ण साध्य होता है। साध्य-साधन के प्रश्न पर गांधी जी का मत (Gandhi Ji Ke Vichar) कई अन्य राजनीतिक विचारकों के मत से भिन्न है।
उदाहरण के लिए मॉर्क्सवाद वर्गविहीन समाज की प्राप्ति के लिए हिंसा और क्रांति का समर्थक है। हिंसा द्वारा वर्गहीन समाज स्थापित किया जा सकता है। इसके विपरीत Gandhi Ji Ke Vichar यह था कि वर्गविहीन समाज, अहिंसा द्वारा प्राप्त किया जाय।
स्पष्टतः हिंसा का साधन गांधी जी की दृष्टि में अपवित्र है जब कि अहिंसा का साधन पवित्र है। इसी प्रकार जहाँ कई राजनीति विचारक साधनों के प्रश्न पर मैकियावली के विचारों के निकट हैं, वहाँ गांधी जी का चिन्तन इसके बिल्कुल भिन्न है।
निष्कर्ष
ऊपर दिए गए कंटेंट के माध्यम से आपने गांधीजी के विचार (Gandhi Ji Ke Vichar) स्रोत को जाना। आशा है आपको ऊपर दी गई जानकारी जरूर अच्छी लगी होगी। आर्टिकल पढ़ने के लिए धन्यवाद। गांधी जी के बारे में और अधिक जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें और विस्तार से पढ़ें।
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