महात्मा गांधी (Bapuji Gandhi) ने अस्पृश्यता वर्ण-व्यवस्था और महिला उत्थान के कार्य विभिन्न कार्य किए, जो आप इस आर्टिकल के अंतर्गत जानेंगे बापूजी गांधी के सामाजिक विचार (gandhiji ke samajik vichar) और उनके कार्य का व्याख्या तो चलिए जानते हैं।

गांधी जी (Bapuji Gandhi) के सामाजिक विचार
Bapuji Gandhi का सम्पूर्ण सामाजिक दर्शन उनके नैतिक समाज की अवधारणा पर आधारित है। गांधी जी (Bapuji Gandhi) का मानना था कि जब तक स्वस्थ्य समाज नहीं बनेगा, तब तक अच्छी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्थाएँ विकसित नहीं हो सकेंगी। राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक प्रगति और स्वस्थ्य समाज परस्पर एक दूसरे से सम्बन्धित हैं।
हमारे लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है कि हमारा समाज बहुत प्राचीन है तथा वह विश्व का पथ प्रदर्शक रहा है। इससे अधिक आवश्यकता इस बात की है कि हम वर्तमान समाज को आदर्श समाज बनाएँ। वर्तमान भारतीय तथा पाश्चात्य समाज बुराइयों और आन्तरिक कमजोरियों से ग्रसित है। उन्होंने उन बुराइयों को दूर करने के लिए प्रयत्न किए।
अस्पृश्यता निवारण पर Bapuji Gandhi के विचार
Bapuji Gandhi अस्पृश्यता को हिन्दू समाज का कलंक मानते थे। वे मानते थे कि अस्पृश्यता पापमूलक तथा यह किसी भी धर्म का अंश नहीं हो सकती। गांधी जी अस्पृश्यता को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहते थे। उन्होंने अछूतों को हरिजन कहा तथा कहा कि अस्पृश्यता निवारण के बिना, स्वराज्य का कोई अर्थ नहीं है। अस्पृश्यता को Bapuji ने कृत्रिम अथवा बनावटी माना।
इसका व्यक्ति के नैतिक या बौद्धिक विकास से कोई सम्बंध नहीं है। यह हिन्दू समाज की विकृति है। अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए वे हरिजनों के मंदिर प्रवेश के समर्थक थे। आज तो यह मुद्दा इतना गम्भीर नहीं है, पर जब गांधी जी (Bapuji Gandhi) ने स्वतंत्रता के पूर्व प्रयत्न किए तब यह महत्त्वपूर्ण मुद्दा था। गांधी जी ने सार्वजनिक स्थानों पर हरिजनों को स्थान दिलाया। उन्होंने अंग्रेजों की उस कुटिल चाल को समाप्त किया जिसके अनुसार हरिजनों को शेष हिन्दू समाज से अलग करने की कोशिश की गई थी।
जब अंग्रेजी सरकार ने 1932 में साम्प्रदायिक निर्णय के अनुसार हरिजनों के लिए पृथक निर्वाचन की घोषणा की तो गांधी जी ने इसका विरोध किया और आमरण अनशन प्रारम्भ किया। परिणामतः अँग्रेजों ने इस निर्णय को वापिस लिया। गांधी जी ने हरिजन बस्तियों में रहना प्रारम्भ किया। उन्होंने अछूतों में आत्मसम्मान के भाव विकसित करने की कोशिश की। उन्होंने हिन्दुओं को सलाह दी कि हरिजन बालकों को अपने घर रखें तथा उनका लालन-पालन अपने परिवार के अन्य बच्चों के समान करें, गांधी जी ने हरिजनों को भी बुरी आदतें छोड़ने की सलाह दी।
Bapuji ने किए महिला उत्थान के कार्य
महिलाओं के प्रति व्यक्ति और समाज का व्यवहार तथा महिलाओं की भारतीय समाज में स्थिति मध्यकाल से ही खराब रही है। गांधी जी ने महिलाओं के लिए कार्य किए। वे इस तर्क को अस्वीकार करते थे कि महिलाओं का स्थान समाज में पुरुषों से नीचा होता है। Bapuji Gandhi ने स्त्री तथा पुरुष दोनों को समान दर्जा दिया। इतना ही नहीं वे नारी को चरित्र की दृष्टि से उच्च मानते थे तथा उसे त्याग, ममत्व, करुणा और ज्ञान की मूर्ति मानते थे। उनका विश्वास था कि अहिंसा के नैतिक शस्त्र का प्रयोग पुरुष की तुलना में महिलाएँ अधिक क्षमता और दक्षता के साथ कर सकती हैं, क्योंकि उनमें त्याग और प्रेम की शक्ति अधिक होती है।
Bapuji Gandhi ने पर्दा-प्रथा का विरोध किया। वे मानते थे कि पर्दे से चरित्र की पवित्रता नहीं आती है। उन्होंने महिलाओं को हीन भावना त्यागने का आह्वान किया। गांधी जी ने महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्वतंत्रता का समर्थन किया। वे महिला मताधिकार के समर्थक थे। उन्होंने स्त्री शिक्षा पर जोर दिया।
महात्मा गांधी ने बाल विवाह का विरोध किया। वे बाल विवाह में शारीरिक और नैतिक दोनों बुराइयों को मानते थे। बाल विवाह के कारण ही समाज में कई बाल विधवाएँ हैं। वे विधवाओं के पुनर्विवाह के समर्थक थे। उनकी मान्यता थी कि स्वेच्छापूर्वक विधवा रहना हिन्दू धर्म की अमूल्य देन है और जबरन विधवा रखना अभिशॉप है। विवाह को गांधी जी एक पवित्र संस्कार मानते थे। विवाह का उद्देश्य भोग भोगना नहीं, अपितु प्रजनन है। गांधी जी अन्तर्जातीय और अन्तर्सम्प्रदाय विवाह के समर्थक थे। गांधी जी ने दहेज प्रथा का विरोध किया।
वर्ण-व्यवस्था का सिद्धान्त
Bapuji Gandhi की आस्था वर्ण-व्यवस्था में थी। वर्ण भारतीय समाज रचना का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। गांधी जी ने वर्ण का अर्थ बहुत सरल लगाया। उनके अनुसार मनुष्य इस जगत में कुछ स्वाभाविक योग्यताओं को लेकर पैदा होता है। इन्हीं के आधार पर वर्ण का सिद्धान्त बनाया गया है। इसके अनुसार सबको अपना काम करना चाहिए। वंश अपने वर्ण और परंपरागत काम को केवल जीवित रखने के लिए ही करने की व्यवस्था है।
वर्ण-व्यवस्था में आनुवंशिक संस्कारों से लाभ उठाया जाता है, इसमें प्रतियोगिता समाप्त हो जाती है। प्रत्येक वर्ण अपना–अपना काम करता है। साथ ही वर्ण-व्यवस्था में मजदूरी की या पारिश्रमिक की समानता है, क्योंकि सभी पेशे बराबर हैं, सबका लक्ष्य समाज को लाभ पहुँचाना है।
वर्ण-व्यवस्था का अर्थ ऊंच-नीच नहीं होना चाहिए। वर्ण बदला जा सकता है, क्योंकि उसका सम्बन्ध पेशे से है। गांधी जी ने वर्ण-व्यवस्था का समर्थन किया, पर जातिगत भेदभाव का विरोध किया। वे इसे मानवीय न्याय विरोधी मानते थे। वे जाति व्यवस्था को समाप्त करने के समर्थक थे।
राष्ट्रवाद, अन्तर्राष्ट्रीयता और गांधी Bapu ji
राष्ट्रवाद आधुनिक युग की सर्वाधिक प्रभावशाली भावना है। सहज और स्वाभाविक है, व्यक्ति के अन्तःकरण से इसे किसी वाद, विचार अथवा आग्रह के द्वारा निकाला नहीं जा सकता। राष्ट्रीय आन्दोलन में गांधी जी की निर्णायक और अग्रणी भूमिका के कारण आज भी प्रायः लोग उन्हें प्रखर राष्ट्रवादी के रूप में पहचानते हैं। Bapuji Gandhi पक्के राष्ट्रवादी थे। उन्होंने कहा था कि मानवता के लिए मरने की आकांक्षा से पहिले भारत को जीना सीखना होगा।
पर वे उग्रराष्ट्रवाद के समर्थक नहीं थे। आज राष्ट्रवाद की उग्रता अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति के लिए बहुत समस्या पैदा कर रही है पर गांधी जी का राष्ट्रवाद नैतिक मान्यताओं, आध्यात्मिक विचारों और विश्वबन्धुत्व के उदात्त विचारों पर आधारित था। उनका राष्ट्रवाद विश्वप्रेम का ही एक भाग है। गांधी जी ने संकुचित रूप में नहीं अपितु व्यापक और उदात्त दृष्टिकोण से राष्ट्रवाद के विचार को पस्तुत किया। गांधी जी के राष्ट्रवादी विचार अहिंसक और सौम्य थे।
विशेषकर कमजोर राष्ट्रों की सेवा
वे मैकियावली की भाँति आक्रामक या उग्र नहीं थे। Bapuji Gandhi किसी भी राष्ट्र के अस्तित्व को समाप्त करने के समर्थक नहीं थे। वे चाहते थे कि व्यक्ति को समाज की सेवा में सर्वस्व अर्पित कर देना चाहिए। इसी प्रकार प्रत्येक राष्ट्र को संसार के अन्य राष्ट्रों, विशेषकर कमजोर राष्ट्रों की सेवा में अपने आपको लगा देना चाहिए। वे भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत रहे।
स्वतंत्रता वे इसलिए चाहते थे ताकि स्वतंत्र भारत अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में एक आदर्श राष्ट्रीयता का नमूना उपस्थित कर सके। वे किसी भी देश द्वारा दूसरे देश के शोषण के समर्थक नहीं थे। गांधी जी का राष्ट्रवाद प्रेम, अहिंसा और बन्धुत्व के विचारों से परिपूर्ण था। गांधी जी की आस्था अन्तर्राष्ट्रीयता में थी। उनका आदर्श ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ था। उन्होंने सम्पूर्ण विश्व का स्वामी ईश्वर को माना।
मानव मात्र को ईश्वर की संतान माना गांधी जी ने राष्ट्र को अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में एकांकी इकाई नहीं माना। पूर्ण स्वतंत्रता का अर्थ सबसे अलग रहने की स्वतंत्रता नहीं है अपितु एक स्वस्थ्य परस्परावलम्बन है। वे सत्य एवं अहिंसा के आधार पर राष्ट्रों में एकता और मैत्रीभाव स्थापित करना चाहते थे
समस्याओं का हल अहिंसा द्वारा
Bapuji Gandhi ने आधुनिक विश्व को नई दिशा दी। उन्होंने आधुनिक सभ्यता की कमजोरियों और अधूरेपन को प्रगट किया तथा उन्हें दूर करने के लिए नैतिक मूल्यों को प्रस्थापित करने का प्रयत्न किया। उन्होंने यह जोर देकर कहा कि यदि हिंसा से ही मानवीय समस्याओं को हल किया गया तो वर्तमान सभ्यता का विनाश अनिवार्य है। व्यक्तिगत समस्याओं से लेकर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का हल अहिंसा द्वारा निकालने का मार्ग गांधी जी ने बतलाया। अणु आयुधों द्वारा विध्वंस की संभावना से भयभीत विश्व को अहिंसा का मार्ग बतलाकर गांधी जी ने मानव जीवन में आशा और विश्वास का संचार किया। उनका दृढ़ विश्वास था कि समस्याओं का शान्तिपूर्ण समाधान सम्भव है।
गांधी जी ने वर्तमान राजनीति के मूल चरित्र को ही बदलने का प्रयास किया। वर्तमान राजनीति धूर्तता, छल-कपट और अविश्वास पर आधारित है। गांधी जी ने इसे धर्म और नैतिकता का आधार प्रदान किया। उन्होंने धर्मविहीन राजनीति को मृत्यु का एक जाल कहा। उनका आग्रह था कि राजनीति को धर्म के अधीन रहना चाहिए। गांधी जी ने साध्य के साथ साधन की पवित्रता का विचार दिया।
Bapuji Gandhi का सत्याग्रह का मार्ग राजनीतिक अन्याय के प्रतिकार का बहुत सशक्त और प्रभावशाली साधन है। सत्याग्रह सभी प्रकार के शोषण, उत्पीड़न और हिंसा के विरोध में शुद्धतम आत्मशक्ति का प्रयोग है। इससे हमारे सामाजिक आदर्शों में बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है, गांधी जी ने सत्याग्रह के द्वारा भारत में अभूतपूर्व जागृति पैदा की।
मानव जीवन को राजनीतिक
गांधी जी ने हमें एक व्यापक दृष्टि दी। उन्होंने मानव जीवन को राजनीतिक, आर्थिक या केवल समाजशास्त्रीय दृष्टि से नहीं देखा अपितु समग्र रूप से देखा। उन्होंने मानव जीवन को एक और अखण्ड माना। उन्होंने व्यक्ति की गरिमा को स्थापित किया, राज्य की शक्ति में वृद्धि का विरोध किया। सत्ता के केन्द्रीयकरण का विरोध किया। उन्होंने व्यक्ति को राज्य के अधीन नहीं माना जैसा कि अनेक पाश्चात्य राजनीतिक व्यवस्थाओं में पाया जाता है।
Bapuji Gandhi के चिन्तन में राज्य और उसके कार्य व्यक्ति के विकास के लिए हैं, आर्थिक क्षेत्र में गांधी जी का चिन्तन नैतिक मूल्यों की स्थापना में सहायक था। वे शोषण के विरोधी थे, उन्होंने केन्द्रीयकरण और व्यापक पैमाने पर भारी उद्योगों के विस्तार का विरोध किया। कुटीर उद्योग और लघु उद्योगों का समर्थन करके गांधी जी भारत के अधिसंख्य लोगों को रोजगार सुलभ कराना चाहते थे। प्रायः यह कहा जाता है कि वे मशीनों के विरोधी थे पर ऐसा है नहीं।
उन्होंने अनावश्यक रूप से भारी मशीनों पर आधारित उद्योगों का विरोध किया था, क्योंकि ऐसे उद्योगों से बेकारी के बढ़ने का भय था। उन्होंने देश के अधिक से अधिक लोगों को काम में जुटाने की दृष्टि से ग्राम उद्योगों और खादी के प्रसार पर बल दिया था। गांधी जी ने सामाजिक सुधार के महत्त्वपूर्ण कार्य किए। वे कोरे चिन्तक नहीं थे वरन एक कर्मयोगी और संघर्षशील योद्धा थे। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में उनकी भूमिका ने केवल देश को स्वतंत्रता ही नहीं दिलाई अपितु विश्व में साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के विरोध में एक निर्णायक अहिंसक संघर्ष किया।
निष्कर्ष
गांधी जी (Bapuji Gandhi) केवल भारत के ही नहीं अपितु विश्व के महान विचारक थे। उन्होंने ऐसी समाज रचना, राजनीतिक व्यवस्था, आर्थिक प्रणाली और नैतिक दृष्टि को विकसित किया, जो मानवता को स्थायी शान्ति और समृद्धि की ओर ले जाने में सहायक है।
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