Ahinsa Par Gandhiji Ke Vichar || सत्य और अहिंसा पर गांधीजी के विचार

Ahinsa Par Gandhiji Ke Vichar

सत्य और अहिंसा पर गांधीजी ने क्या कहा? चलिए इसके बारे में जानते हैं। Ahinsa Par Gandhiji Ke Vichar इस मानव जाति के लिए बहुत ही प्रेरणादायक हैं। जो महात्मा गांधी जी ने अहिंसा के बारे में बताया है। चलिए इस आर्टिकल के माध्यम से पढ़ते हैं।

Ahinsa Par Gandhiji Ke Vichar
Ahinsa Par Gandhiji Ke Vichar

अहिंसा Par Gandhiji Ke Vichar

गांधी जी के चिन्तन में अहिंसा का विचार सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। विचारकों का यहाँ तक सोचना है कि गांधी जी के विचारों के रूप में अहिंसा का पुनर्जन्म हुआ है। अहिंसा का हमारे जीवन और चिन्तन में बहुत अधिक महत्त्व रहा है। मौलिक रूप से यह सिद्धान्त प्रत्येक भारतीय दार्शनिक चिन्तन के साथ जुड़ा हुआ है।

छांदोग्योपनिषद में तप, दान सरलता और सत्य के साथ अहिंसा (Ahinsa) के महत्त्व का प्रतिपादन किया गया है। पातंजलि ने आत्म-शुद्धि की साधना में अहिंसा के महत्त्व को स्वीकार किया है। महाभारत में अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म (Ahinsa Parmo Dharm) , तप और सत्य माना है।

गौतम की शिक्षाओं में अहिंसा का उपदेश है। भगवान महावीर (Bhagvaan Mahaveer) तो अहिंसा के अवतार ही माने जाते हैं। गांधी जी के विचारों पर उपर्युक्त भारतीय चिन्तन की परम्परा का प्रभाव स्पष्ट है। इसके साथ ही उन्होंने बाइबिल के पर्वत-प्रवचन तथा टॉल्स्टाय के ग्रन्थों से भी अहिंसा के विचार (Ahinsa Ke Vichar) को प्राप्त किया। गांधी जी ने अहिंसा को व्यापक मान्यता दी। उनका मानना था कि सत्यरूपी साध्य की खोज के लिए साधन का नैतिक होना अनिवार्य है और यह खोज हम अहिंसा रूपी साधन द्वारा ही कर सकते हैं।

अहिंसा का अर्थ (Ahinsa Menining)

सामान्यतः अहिंसा का अर्थ यह लगाया जाता है कि किसी को न मारना ही अहिंसा है। पर Gandhiji ने इसे आंशिक माना है। यह विचार स्थूल और सीमित विचार है। अहिंसा इससे अधिक है। वह मनसा, वाचा, कर्मणा है अर्थात् कुविचार, मिथ्या भाषण, किसी का बुरा चाहना, जगत् को जिस चीज की आवश्यकता है उस पर कब्जा करके रखना हिंसा है।

इस रूप में Ahinsa ka vichar काफी व्यापक है। हिंसा के मूल में स्वार्थ, क्रोध या विद्वेष के भाव रहते हैं, इसके विपरीत अहिंसा प्राणिमात्र के प्रति यहाँ तक कि अपने प्रबलतम शत्रु के प्रति भी प्रेम और मैत्री की भावना है।

अहिंसा के तीन रूप (Parkar Ahinsa)

Gandhi ji अहिंसा को सर्वोच्च नैतिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक मानते हैं। अहिंसा के तीन रूप हो सकते हैं, सर्वोत्तम अथवा जागृत अहिंसा, औचित्य पूर्ण अथवा व्यावहारिक अहिंसा और भीरु लोगों की अथवा निकृष्ट अहिंसा। जागृत अहिंसा को व्यक्ति अपनी नैतिकता के कारण स्वीकार करता है, यह व्यक्ति की अन्तरात्मा की पुकार पर जन्म लेती है। इस प्रकार की अहिंसा बहुत बलशाली होती है।

यह असंभव को भी संभव कर सकती है। इसमें शक्ति का अपार स्रोत रहता है। औचित्यपूर्ण Ahinsa वह अहिंसा है जिसे हम आवश्यकता पड़ने पर औचित्य के आधार पर अपनाते हैं। यद्यपि इसमें जाग्रत अहिंसा के समान अपार शक्ति नहीं होती फिर भी यदि ईमानदारी और दृढ़ता से उसका पालन किया जाय तो यह लाभदायी सिद्ध होती है।

भीरुओं की अहिंसा निष्क्रिय अहिंसा है। वह वास्तव में अहिंसा है ही नहीं। यह तो डर और मजबूरी का परिणाम है। इस अहिंसा से कुछ नहीं होता। कायरता की गांधी जी निन्दा करते हैं। वे तो कायरता और हिंसा में से हिंसा को पसन्द करते हैं।

गांधी जी का अहिंसा विचार (Ahinsa Par Gandhiji Ke Vichar)

गांधी जी का अहिंसा का विचार काफी व्यापक है। वास्तव में अहिंसा दर्शन ही नहीं अपितु कार्यपद्धति और जीवन है। यह व्यक्ति के व्यक्तिगत आचरण तक ही सीमित नहीं है अपितु सामाजिक परिवर्तन और मानव सभ्यता के विकास का आधार है। अहिंसा राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक जीवन का आधार है। Ahinsa ही समाज का आधार है।

Ahinsa Par Vichar करते समय गांधी जी ने अतिवादी दृष्टिकोण नहीं अपनाया, वे काफी व्यावहारिक थे। उन्होंने जीवन निर्वाह के लिए की जाने वाली हिंसा को पाप नहीं माना। मनुष्य जीवन और सम्पत्ति को हानि पहुँचाने वाले जीव-जन्तुओं को मारने के भी विरोधी नहीं थे। शरीर के पोषण और आश्रितों की रक्षा के लिए की गई हिंसा को उन्होंने पाप नहीं माना।

अहिंसा नकारात्मक और सकारात्मक (Sakartamak Nakaratmak Ahinsa)

अहिंसा के दो पक्ष हैं-एक नकारात्मक और दूसरा सकारात्मक। किसी प्राणी को काम, क्रोध, लोभ आदि के वशीभूत होकर हिंसा न पहुँचाना, अहिंसा का नकारात्मक रूप है तथा प्रेम, धैर्य, अन्याय का विरोध और वीरता, इसमें से एक अथवा एक से अधिक तत्वों से युक्त Ahinsa सकारात्मक है। वस्तुतः उपर्युक्त भावनाएँ सकारात्मक अहिंसा के मूल तत्व हैं।

हिंसा का आधार विद्वेष है उसी प्रकार Ahinsa Ka Aadhar प्रेम है। यही कारण है कि अहिंसा का व्रत लेने वाला व्यक्ति शत्रु से भी घृणा नहीं करता अपितु वह शत्रु की बुराई से घृणा करता है। इसी प्रकार अहिंसा में धैर्य तत्व भी महत्त्वपूर्ण है। यदि अहिंसावादी व्यक्ति को अपने प्रयत्नों में सफलता नहीं मिलती तो वह निराश नहीं होता, वह पुनः धैर्यपूर्वक प्रयत्न करता है।

अहिंसा, निष्क्रियता या अकर्मण्यता नहीं अपितु सतत् प्रयत्न और बुराइयों का प्रतिकार करना है। अन्यायी के अत्याचार से अहिंसावादी कभी घबड़ाता नहीं है। वीरता, अहिंसा का चौथा गुण है। गांधी जी अहिंसा (Gandhiji Ahinsa) को कायरों, डरपोकों का हथियार नहीं मानते, वे उसे वीरों और साहसी लोगों का गुण मानते हैं।

अहिंसा योद्धा का गुणं है। यदि हम वीर पुरुष नहीं हैं, हममें आत्मबल नहीं है तो ऐसी स्थिति में हम अहिंसा का पालन नहीं कर सकते। गांधी जी ने मानव जाति के विकास को अहिंसा का निरंतर अग्रगामी विकास माना है। सभी धर्मों ने अहिंसा का ही उपेदश दिया है। सभ्यताओं के निवास का आधार अहिंसा है।

गांधी जी की अहिंसा की विशेषताएँ (Ahinsa ki visestaye)

Gandhiji की अहिंसा की दो विशेषताएँ हैं-पहली विशेषता यह है कि गांधी जी ने अहिंसा का सूक्ष्म और विस्तृत विवेचन किया है तथा दूसरी विशेषता यह है कि गांधी जी ने अहिंसा के क्षेत्र का विस्तार करके इसे नूतन आयांम प्रदान किया है। गांधी जी के पूर्व, अहिंसा का सामान्यतः अर्थ किसी जीव की हत्या न करना और आहार-विहार में सात्विक रहना मात्र था। पर Gandhiji ने इस विचार के आगे अहिंसा के विचार (Ahinsa ke vichar) को बढ़ाया।

उनका कहना था कि अहिंसा खान-पान के विचार से परे है। एक मांसाहारी अहिंसक हो सकता है और एक शाकाहारी हिंसक हो सकता है। इसी प्रकार गांधी जी ने अहिंसा के क्षेत्र का विस्तार किया। Gandhi ji के पूर्व अहिंसा, व्यक्तिगत गुण माना जाता था। पर गांधी जी ने अहिंसा को व्यक्तिगत गुण की परिधि से निकाल कर सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सार्वजनिक क्षेत्र तक विस्तृत किया।

Satya Aur Ahinsa गांधी जी का कहना

गांधी जी का कहना है कि अहिंसा यदि व्यक्तिगत गुण है तो मेरे लिए त्याज्य वस्तु है। मेरी अहिंसा की कल्पना व्यापक है, वह करोड़ों की है। हम तो यह सिद्ध करने के लिए पैदा हुए हैं कि सत्य और अहिंसा (satya aur ahinsa) व्यक्तिगत वस्तु नहीं हैं। साहस अहिंसा और हिंसा दोनों में होता है पर जहाँ हिंसक अपनी रक्षा के लिए हिंसा द्वारा साहस का प्रदर्शन करता है, वहाँ अहिंसक अपनी रक्षा के लिए हिंसा का प्रयोग नहीं करता।

वह संयम का प्रयोग करता है। हिंसा से किसी के शरीर और स्थिति पर विजय प्राप्त की जा सकती। पर अहिंसा से शरीर और मन दोनों पर विजय प्राप्त की जाती है। अहिंसा, प्रेम द्वारा शत्रु को जीतना है, अहिंसा से आत्मशक्ति विकसित होती हैं।

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